Wednesday, March 28, 2012

सच्चे बादशाह से बातें कीजिए God hears.

रूह में रब का नाम नक्श है।
रूह सबकी एक ही है।
जो भी पैदा होता है, उसी एक रूह का नूर लेकर पैदा होता है।
रूह क्या है ?
रब की सिफ़ाते कामिला का अक्स (सुंदर गुणों का प्रतिबिंब) है।
सिफ़ाते कामिला को ज़ाहिर करने वाले बहुत से नाम हैं।
रब का हरेक नाम रूह को ताक़त देता है। रब का नाम रूहानी ताक़त का ख़ज़ाना है।
रब का नाम दिल का सुकून है।
खड़े बैठे या लेटे कैसे भी उसका नाम लो, दिल को सुकून मिलता है।
जहां तुम हो, वहीं तुम्हारी रूह है और तुम्हारा रब भी वहीं है।
रब की मौजूदगी को महसूस कीजिए।
अपने अहसास को थोड़ा थोड़ा करके गहरा करते जाइये।
अपने रब से बातें कीजिए, उसके साथ हंसिए बोलिए।
उसके साथ अपने सुख दुख शेयर कीजिए, जैसे कि आप अपने मां बाप और दोस्त से शेयर करते हैं।
आप जो भी कहते हैं, वह उसे सुनता है।
यक़ीन कीजिए, आपको उससे बातें करके अच्छा लगेगा।
वह आपकी बातों का आपको जवाब भी देगा।
वह आपकी बातों का जवाब बहुत तरह से देता है, आज भी दे रहा है लेकिन आपका ध्यान उसकी तरफ़ नहीं है इसलिए आप यह जान ही नहीं पाते कि उसने आपकी किस बात पर किस तरह रिएक्ट किया है ?
आप जो कुछ सुनते हैं, उसे रब से जोड़कर सुनिए, उनमें आपको जवाब मिलेगा।
जो कुछ आप देखते हैं, उसे रब से जोड़कर देखिए, वे चीज़ें आपको रब की तरफ़ से संकेत देंगी।
जिन धार्मिक ग्रंथों को आप पढ़ते हैं, उन पर ध्यान दीजिए, आपको वहां अपनी बात का जवाब मिलेगा।
जैसे जैसे आपकी प्रैक्टिस बढ़ती जाएगी, आप ख़ुदा के इशारों को बेहतर तरीक़े से समझने लगेंगे।
रब से बात करेंगे तो आपको वह हमेशा अपने साथ ही महसूस होगा।
इससे आपके टेंशन्स दूर होंगे, आपको सुकून मिलेगा।
आप जिस रब से बात कर रहे हैं, वह इस कायनात का बादशाह है और बादशाह से बात करना अपने आप में ही एक गौरव की बात है।
कायनात का बादशाह आपको हमेशा अवेलेबल है।
बादशाह अपना हो तो फिर चिंता किस बात की है ?
बस हम बादशाह के हो जाएं।

4 comments:

  1. सबसे सच्चा है वही, उससे बड़ा न कोय ।

    बादशाह के नूर से, चम्-चम् जीवन होय ।


    चम्-चम् जीवन होय, बंदगी नियमित करिए ।
    तन मन अपना खोय, सामने माथा धरिये ।

    सबसे सच्चा दोस्त, समझ ले नादाँ बच्चा ।
    कण कण में मौजूद, साथ तेरे है बच्चा ।।

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    1. कण कण में मौजूद, बादशाह रविकर सच्चा ।।

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  2. अहा!
    बहुत सही रास्ता दिखाया है आपने।

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  3. यह सब ध्यान,साधना का अंग है। जिस्म और रूह के प्रति आम आदमी का ज्ञान बहुत थोथा है। बिना फकीर की शरण में गए खुदा से मिलना संभव नहीं। बमुश्किल कोई मिलेगा जो सीधे परमात्मा से मिलने में कामयाब हुआ हो। फकीर ही माध्यम है। और फकीर भी कौन? बकौल कबीरः
    हद टपे सो औलिया,बेहद टपे सो पीर
    हद-बेहद दोनों टपे,ताको नाम फकीर

    ऐसा फकीर की जिस दिन कृपा होती है,परमात्मा से उसी दिन साक्षात्कार हो जाता है और एक समय ऐसा भी आता है जब बात केवल बातचीत तक सीमित नहीं रहती। कबीर इसे इस तरह बयां करते हैं-
    मन ऐसा निर्मल भया, जैसे गंगा नीर।
    पीछे-पीछे हरि फिरे, कहत कबीर कबीर।

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